Thursday, January 15, 2009

नीड का निर्माण


नीड का निर्माण फिर फिर

नेह का आव्हान फिर फिर

यह उठी आँधी कि नभ में

छा गया सहसा अँधेरा

धूलि धूसर बादलों ने

भूमि को इस भाँती घेरा

रात सा दिन हो गया

फिर रात आई और काली

लग रहा था अब न होगा

इस निशा का फिर सवेरा

रात के उत्पात भय से

भीत जन जन भीत कण कण

किंतु प्राची से उषा की

मोहिनी मुस्कान फिर फिर

नीड का निर्माण फिर फिर

नेह का आव्हान फिर फिर

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में

उषा है मुसकराती

घोर गर्जनमय गगन के

कंठ में खग पंक्ति गाती

एक चिडिया चोंच में तिनका लिए

जो जा रही है

वह सहज में ही पवन

उनचास को नीचा दिखा रही है

नाश के दुःख से कभी

दबता नहीं निर्माण का सुख

प्रलय की निस्तब्धता में

सृष्टि का नवगान फिर फिर

नीड का निर्माण फिर फिर

नेह का आव्हान फिर फीर

- हरिवंश राय बच्चन

2 comments:

  1. I had it in my 10th std books remember ...

    u had explained me what it was all about ...
    "kintu prachi se usha ki manamohini muskaan fir fir"

    hariwansh rai bachchan at his best

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  2. Very nice! And u seem to be getting comfortable with the Devanagari transcription :-)

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