Monday, November 18, 2013

जिंदगी जब भी तेरी बज़्म

I have been missing one of my favorite compositions. Here it is.

जिंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
यह ज़मीन चाँद से बेहतर नझर आती है हमें

सुर्ख फूलों से मेहक उठी है दिल कि राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें

याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
रात के कितने पेहर रोज़ जगाती है हमें

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यों है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें

                                 -- कैफी आझमी


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